नमस्कार दोस्तों, आशा है कि आप सभी लोग बढियाँ होंगे। आज हम आपको Short Drama Script in Hindi on Pollution देने जा रहे हैं। आप उसे नीचे पढ़ सकते हैं।
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पात्र 1 – हरिहर काका (रिटायर्ड फौजी)
पात्र 2 – विशाल ( 10वी क्लास का छात्र )
पात्र 3 – रमेश (नौकरी करने वाला)
स्थान – हरिहर काका का बरामदा (सुबह का समय अख़बार पढ़ते हुए)
हरिहर काका अख़बार पढ़ते हुए एक निगाह से पूरे पन्ने को देखते जा रहे है सहसा उनकी नजर एक खबर पर जा कर रुक जाती है… (खबर यह है कि देहरादून और मैसूर के जंगलो में पुलिस और वन माफिया के मुठभेड़ में तीन वन माफिया घायल अवस्था में पकड़े गए)
हरिहर काका (खुद से ही गुस्से में कहते है) – अच्छा हुआ, इन तीनो को घायल अवस्था में पकड़ लिया गया। मैं होता तब इन तीनो को यमराज के यहां भेज देता….
विशाल (बगल में बैठे हुए हरिहर काका की बात को सुनकर) – नमस्कार काका।
हरिहर काका (विशाल को आशीर्वाद देते हुए) – आओ, विशाल बैठो।
विशाल (बैठते हुए) – काका आप सबेरे सबेरे किसे यमराज के पास भेज रहे है?
रमेश (टहलते हुए आया नमस्कार करते हुए हरिहर काका से) – काका आज पेपर में कोई खास खबर है क्या?
काका – पेपर में तो रोज ही खास खबर रहती है, खबर ढूढ़ने वालो की नजर होनी चाहिए।
रमेश – काका! आपको तो मालूम है, मैं नौकरी पेशा वाला आदमी हूँ। सुबह आपके दर्शन करने आ जाता हूँ ताकी हमे भी आपके श्रीमुख से कोई खबर सुनने को मिल जाय, वरना जीवन की चक्की पीसते हुए हमारे पास खबर पढ़ने के लिए समय ही कहां है?
विशाल – काका! आपने बताया नहीं, किसे यमराज के पास भेज रहे थे?
(रमेश विशाल की बात सुनकर चौकते हुए देखने लगा)
काका – अरे, वही तीन वन माफिया को जो घायल अवस्था में पकड़े गए है, अगर हमारे कार्यकाल में मिल गए होते तो….
रमेश ( तपाक से बोल उठा ) – इनका यमपुर जाना सुनिश्चित हो जाता….
काका (रमेश) – तूने हमारे मुंह की बात छीन ली।
विशाल – लेकिन, काका! इस तरह से किसी को भी दंड देना उचित है क्या?
काका (पेपर विशाल की तरफ बढ़ाते हुए) – देखो, स्वयं ही, देख पढ़ लो।
विशाल (पेपर पढ़ते हुए, उसके माथे पर बल पड़ रहे है)
काका – रमेश! यह वन माफिया लगातार पेड़ो की कटाई करते जा रहे है जिससे मनुष्यो के साथ ही वन्य जीव भी परेशान होते है।
विशाल – आप ठीक कह रहे है काका। आपका क्रोध जायज है वन नहीं रहने से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है वन से ही हवा शुद्ध रहती तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है।
रमेश (आप दोनों को नमस्कार) – हमारा समय हो गया है आजीविका के लिए जाना होगा।
काका – रमेश, अपनी तरफ से कोई भी ऐसा कार्य नहीं करना जिससे प्रदूषण को बढ़ावा मिले, क्योंकि पर्यावरण है तो हम हैं, हमारा जीवन है। आज विकास की आड़ में जिस तरह से पेड़ों की कटाई हो रही है, उससे यही लग रहा है हम विकास की तरफ नहीं बल्कि विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं।
रमेश – आपने एकदम सही बात कही है, आधुनिकता की दौड़ में हम अंधे हो गए हैं, इसे रोकना अब बहुत आवश्यक हो गया है। हम आपकी बात का एकदम ख्याल रखेंगे और लोगों को भी जागरूक करेंगे।
(विशाल और रमेश का जाना और पर्दा गिरता है। )
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