Drama Script on Save Environment in Hindi

हे दोस्तों, आज हम आपको Drama Script on Save Environment in Hindi देने जा रहे हैं, आप नीचे इसे पढ़ सकते हैं और प्ले में इसका प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन इसे वेबसाइट या ब्लॉग के लिए प्रयोग नहीं कर सकते हैं।

 

 

 

 

 

 

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( सुबह का समय, चाय की दूकान और वहाँ चार दोस्त चाय पीने बैठे और अखबार पढ़ रहे। )

 

 

कैरेक्टर 1 – रमेश

 

कैरेक्टर 2 – उमेश

 

कैरेक्टर 3 – दिनेश

 

करेक्टर 4 – महेश

 

 

( चारो अच्छे दोस्त है। )

 

 

रमेश – यार इस बार अमेरिका में काफी गर्मी पड़ रही है, जबकि वहाँ का तापमान काफी कम रहता है।

 

उमेश – हां यार और अपने भारत में भी कहाँ कम गर्मी पड़ती है, यहां भी तो साल – दर – साल गर्मी बढ़ती ही जा रही है।

 

दिनेश – हाँ भाई, यह ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव है।

 

उमेश – ग्लोबल वार्मिंग ? यह क्या बला है ?

 

रमेश – तमाम तरह के प्रदुषण की वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है और इसकी वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इसकी वजह से पर्यावरण में असंतुलन हो रहा है, कही बहुत अधिक बारिश हो रही है तो कही सूखा पड़ रहा है और कही बहुत गर्मी तो कही बहुत अधिक ठण्ड।

 

 

दिनेश – अभी तो एक दिन अखबार में दिया था कि आने वाले कुछ वर्षों में ग्लेशियरों के पिघलने की वजह से विश्व के मुख्य शहर समुद्र में डूब जाएंगे।

 

दिनेश – अरे महेश भाई, तुम कुछ नहीं बोल रहे हो ?

 

महेश – भाई मैं बोलने में नहीं कुछ करने में विश्वास रखता हूँ।

 

रमेश – भाई ऐसा क्या कर रहे हो ? ज़रा हमें भी तो बताओ। हम भी जितना हो सकेगा कर सकेंगे। वह कहावत तो सुनी ही होगी ” एक से भले दो ”

 

दिनेश – दो नहीं ब्रो चार।

 

महेश – नई – नई टेक्नोलॉजी के कारण भी तो प्रदुषण बढ़ रहा है तो मैंने उसका उपयोग पर्यावरण को बढ़ाने के लिए कर रहा हूँ।

 

रमेश – वह कैसे ?

 

महेश – मैंने यूट्यूब चैनल खोला है और ब्लॉग बनाये हैं और फेसबुक तथा अन्य सोशल मीडिया से लोगों में पर्यावरण के बारे में बता रहा हूँ और लोग इसमें धीरे – धीरे जुड़ रहे हैं। कल जिला बाज़ार में रैली का आयोजन किया गया गया, वहां लोगों को पर्यावरण के संरक्षण के बारे में बताया जाएगा और पेड़ लगाया जाएगा।

 

दिनेश – क्या लोग पर्यावरण के सरक्षण की बातों को मानेंगे ?

 

महेश – मानेंगे, क्यों नहीं मानेंगे, बल्कि हम यह कह सकते हैं कि मानना ही पडेगा। अब किन्तु – परन्तु का समय भी नहीं रह गया है। अब हमारी एक दिन की देरी हमारे पीढ़ियों के कई वर्ष को ख़त्म कर रही है, अगर अब हम नहीं जागे तो आगे ऐसा अन्धेरा आएगा कि उसकी कोई सुबह नहीं होगी।

 

 

 

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