हेलो दोस्तों, आज इस पोस्ट में हम आपको Shiksha Par Natak PDF फ़ाइल में देने जा रहे हैं। आप उस नाटक को डाउनलोड कर सकते हैं।
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3 – भूख | Hindi Drama Script on Social Issues
यहां पर जो नाटक आपको दिया जा रहा है, यह बिलकुल ओरिजिनल है। यह कहीं से भी कॉपीराइटेड नहीं है। हालांकि आप इस नाटक का अपने प्ले के लिए प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन आपको कमेंट बॉक्स में इसकी इजाजत लेनी होगी।
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2- पात्र 1 – दिनेश।
पात्र 2 – नीलम।
पात्र 3 – रंजना (नीलम और दिनेश की एक मात्र संतान)
(दिनेश एक संपन्न किसान है जो नीलम का पति और रंजना का पिता है)
स्थान – स्वयं दिनेश का घर देखने में ही सम्पन्नता झलकती है।
(सुबह के समय दिनेश घूमकर आता है)
दिनेश – रंजन बेटा! क्या रहे हो?
(रंजना को दिनेश प्यार से रंजन कहता है)
रंजना – स्कूल जाने की तैयारी कर रही हूँ पापा!
(दिनेश के पास आती है)
दिनेश – पढ़ाई में कोई परेशानी तो नहीं है?
रंजना – नहीं पापा! कोई परेशानी नहीं है।
दिनेश – अच्छे से पढ़ाई करो, इस बार स्कूल में टॉप करना है।
रंजना – प्रयास कर रही हूँ।
दिनेश – परिणाम भी अच्छा निकलेगा।
दृश्य (रंजना स्कूल चली जाती है दिनेश बरामदे में बैठा है)
नीलम – आप चलकर कुछ खा, पी, लीजिए।
दिनेश – आपने हमे खाना खाने के लिए ही कब कहा है।
नीलम – आपको आवश्यकता होने पर खाना मांग लेना चाहिए।
दिनेश (शिकायत के लहजे में) – आप कितने वर्षो से हमारे साथ रहती है फिर भी हमारी आवश्यकता और स्वभाव समझने में सफल नहीं हो सकी, रही मांगने की बात तो यह हमारे स्वाभाव में नहीं है।
नीलम (बात बदलते हुए) – आप तो सुबह निकल जाते है गौर किया है कभी रंजना कितनी बड़ी हो गयी है।
दिनेश – मैं, आपकी बात समझ रहा हूँ, लेकिन संतान कितनी भी बड़ी हो जाय मां बाप की नजरो में छोटा बच्चा ही रहती है।
दृश्य – (दिनेश के सामने रंजना के बचपन से लेकर वर्तमान तक के दृश्य घूमने लगते है)
नीलम (दिनेश को झंझोड़ते हुए) – कहां खो गए थे, खाना नहीं खाना है क्या?
दिनेश – तुमने ‘वास्तविकता’ को आइना जो दिखा दिया था उसे ही देख रहा था।
नीलम – क्या मतलब? मैं समझी नहीं।
दिनेश – इसीलिए तो कहता हूँ कि हमे नहीं समझ सकती हो।
नीलम – पहले आप खाना खाइये, फिर अपनी बात समझाना।
दृश्य (नीलम खाना परोसने चली जाती है दिनेश भोजन करने बैठ जाता है)
दृश्य (दिनेश खाना खाने के बाद कुर्सी पर बैठा आराम कर रहा है)
नीलम (दिनेश के पास बैठते हुए) – आप क्या कह रहे थे?
दिनेश – मैं यह कह रहा था कि आपकी तरह मुझे भी रंजन की फ़िक्र है।
नीलम – तब आप प्रयास क्यों नहीं करते है।
दिनेश – आपको क्या लगता है मैं सुबह सुबह जाकर झक मारता हूँ।
नीलम – मैं कब कहा कि आप झक मारते है।
दिनेश – तब आपका मतलब क्या था।
(बात लंबी होती देखकर नीलम स्पष्ट रूप से रंजना के विवाह की बात कहते हुए बात खत्म कर देती है)
(शाम को चार बजे के बाद रंजना स्कूल से घर आ गयी)
दिनेश (रंजना को गौर से देखते हुए) – आओ बेटा रंजन! छुट्टी हो गयी।
रंजना – हां पापा! लेकिन आज आप इतना बेचैन क्यों है?
दिनेश – जब बच्चे बड़े हो जाते है तो एक पिता की बेचैनी बढ़ना स्वाभाविक है।
(रंजना घर में चली जाती है नीलम चाय लेकर दिनेश के पास आती है फिर रंजना भी आकर नीलम के पास बैठ जाती है)
नीलम – आप चाय लीजिए।
दिनेश – हमे इस चाय की आवश्यकता महसूस हो रही थी आज पहली बार आपने हमारा मन पढ़ लिया।
(दोनों हंसते है)
नीलम – इतने वर्षो से आपके साथ रहती हूँ मुझसे ज्यादा आपको कौन समझ सकता है।
दिनेश (चाय पीते हुए) – पढाई कैसी चल रही है।
रंजना – ठीक चल रही है पापा।
दिनेश (नीलम से) – अब तो रंजन बहुत बड़ी हो गयी है सोचता हूँ इसके हाथ में मेहदी और पांव में महावर लगाने के दिन आ गए है।
नीलम – आप ठीक सोच रहे है।
रंजना – हमे आप दोनों को छोड़कर कही नहीं जाना है।
नीलम – यही दुनिया का दस्तूर है बेटी, एक दिन सभी लड़कियों को मेहदी हुए महावर लगाने ही पड़ते है।
दिनेश – हर पिता की यही इच्छा रहती है कि उसकी बेटी हाथो में मेहदी और पांव में महावर के साथ सदा सुखी रहे।
Short Drama Script on the Importance of Education in Hindi
दहेज प्रथा पर नाटक PDF | Dahej Pratha Par Natak PDF
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